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आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : आलोचना के नए मापदंड

भवदेव पांडेय

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9239
आईएसबीएन :9788126707997

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आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : आलोचना के नए मापदंड...

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के पहले हिन्दी आलोचना का कोई व्यवस्थित ढाँचा तैयार नहीं हुआ था। कृति के गुण- दोष-दर्शन में दोष ढूँढ़ने का प्रचलन अधिक था। दोष- दर्शन में भी भाषागत त्राुटियों को ज्यादा महत्त्व दिया जाता था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आलोचना के ऐतिहासिक और समाजशास्त्राीय स्वरूप की प्रस्तुति की और ‘लोक के भीतर ही कविता क्या किसी भी कला का प्रयोजन और विकास होता है’µके सिद्धान्त का निरूपण किया। उन्होंने आलोचना को व्यवस्थित रूप देने के लिए कुछ निश्चित मापदंड स्थापित किए। यह पुस्तक आचार्य शुक्ल के जीवन, आलोचक के रूप में उनके विकास और उनकी दृष्टि का एक सम्पूर्ण खाका खींचने की कोशिश करती है। उनके प्रामाणिक जीवन- वृत्त, के साथ बीसवीं शताब्दी का काव्यात्मक आन्दोलन (कविता क्या है ?); आचार्य रामचन्द्र शुक्ल; वैचारिक निबन्धों के प्रथम आचार्य; आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना दृष्टि और उनकी साहित्येतिहास दृष्टिµइन पाँच अध्यायों में विभक्त यह पुस्तक आचार्य शुक्ल को समझने और पढ़ने के नए द्वार खोलती है। इसके अलावा डॉ. पांडेय ने गहन शोध के बाद इस पुस्तक में आचार्य शुक्ल से सम्बन्धित अभी तक अनुपलब्ध कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ भी जुटाई हैं।

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